कनाडा की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के जाने के बाद हुए संघीय चुनाव में मार्क कार्नी के नेतृत्व में लिबरल पार्टी ने शानदार वापसी करते हुए जीत हासिल की है। वहीं, पियरे पोलिएवरे की कंजरवेटिव पार्टी ने अपनी हार स्वीकार कर ली है।
इस चुनाव का सबसे बड़ा संदेश खालिस्तानी समर्थकों को मिला है। खालिस्तानी एजेंडे के प्रमुख चेहरे जगमीत सिंह और उनकी पार्टी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) को करारी शिकस्त मिली है। जगमीत सिंह खुद ब्रिटिश कोलंबिया के बर्नाबी सेंट्रल से चुनाव हार गए हैं। इससे भी बड़ी बात यह रही कि NDP राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बचाने में नाकाम रही। पार्टी को जहां न्यूनतम 12 सीटों की जरूरत थी, उसे मात्र 7 सीटें ही मिल सकीं।
हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए जगमीत सिंह ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। वह पिछले आठ वर्षों से NDP के प्रमुख थे। उन्होंने अपनी हार स्वीकार करते हुए कहा, "मैं निराश हूं कि हम ज्यादा सीटें नहीं जीत सके, लेकिन पार्टी के भविष्य को लेकर मैं आशावादी हूं।"
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह परिणाम कनाडा में खालिस्तानी तत्वों के लिए बड़ा झटका है। जगमीत सिंह और पूर्व प्रधानमंत्री ट्रूडो की नीतियों ने भारत-कनाडा संबंधों को नुकसान पहुँचाया था, खासकर जब इन्होंने आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत पर बेबुनियाद आरोप लगाए थे। इसके अलावा ट्रूडो ने 2020 में भारत में किसान आंदोलन के समर्थन में बयान दिया था, जिससे दोनों देशों के संबंधों में खटास आ गई थी।
अब जबकि खालिस्तान समर्थक चेहरों को जनता ने नकार दिया है, भारत और कनाडा के बीच राजनयिक व व्यापारिक संबंधों के एक बार फिर सामान्य होने की उम्मीद है।
यह चुनाव नतीजे साफ संकेत देते हैं कि कनाडा की जनता अब कट्टरता नहीं, स्थिरता और वैश्विक सहयोग चाहती है।